बुधवार, 6 जून 2012

नन्ही नन्ही आँखों के ..........!!



नन्ही  नन्ही आँखों के वो नन्हे से ख्वाब सुनहरे थे
कुछ बिखरे कुछ सवरे जो भी थे वो थे मेरे अपने थे


नन्हे से घरोंदें में तेरे मेरे ही दिन रात के बसेरे थे
बाग़ में अपने खिलते दो फूलों के प्यारे से घेरे थे
हर रुत में लगते अपने  ही प्यार  के मेले थे


वक़्त का बदला रुख देश में ही कहलाते परदेशी थे
जिनको आती थी शर्म हम पर आज वो मेरे अपने थे
हँसते गाते तंहा अपने ही घरोंदे में ख़ामोशी से रहते थे


एक रोज़ ख़ामोशी को तंज़ दे  परियों से बांते करते थे
वो मेरी रांहे तकते थे हम बेसबब इंतज़ार उनका करते थे
लम्हे सुनहरे ख्वाब रुपहले थे  वो दिन भी कितने अच्छे थे


खुशियों से लबरेज़  हवा में हाथों में हाथ लिए उड़ते थे
कुछ गुज़रे दिन की बांते कुछ आने वाले पल के सपने थे
दर्दीले  खट्टे मीठे जीवन के गुज़रे दिन कितने सच्चे थे


...............................सारा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें