कैसी है ये हवा लहराई
संग अपने आँखें भर लाई
न कभी बचपन से मिली न कभी तेरी याद आई
एक और चोट खाई जो दुल्हन बन के उस चौखट पे आई
ख़ुशी से कभी नाता न जुड़ा गम के पहलु में जिन्दगी बिताई
नए रंग-ए-गम पाए हमने जो बाग़ अपना सवारने आई
कांटे ही कांटे मिले मुझे राह में जो दो कदम मैं आगे बढ़ाने आई
क्या जानू मै दुनिया की रवायतें दर्द के पहलु में जो हयात बीताई
सारा
संग अपने आँखें भर लाई
न कभी बचपन से मिली न कभी तेरी याद आई
एक और चोट खाई जो दुल्हन बन के उस चौखट पे आई
ख़ुशी से कभी नाता न जुड़ा गम के पहलु में जिन्दगी बिताई
नए रंग-ए-गम पाए हमने जो बाग़ अपना सवारने आई
कांटे ही कांटे मिले मुझे राह में जो दो कदम मैं आगे बढ़ाने आई
क्या जानू मै दुनिया की रवायतें दर्द के पहलु में जो हयात बीताई
सारा
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