बुधवार, 6 जून 2012

ख़ता क्या मेरी .....!!!!!




ए  खुदा  छलकती  आँखों  को  पत्थर  कर  दे

सुलगते  हुए  दिल  के  हर  जज़्बात  को  सुपुर्द -ए -खाक  कर  दे
जो  भी  किया  है  दरकार  तुझसे  या  रब  उसे  मेरी  नज़र  कर  दे
जलते  हुए  अरमानो  को  दफ़न  कर  दे  या  उसे  उसकी  हवा  कर  दे 




जिंदगी  यूँ  ही  जलती  रही  है  उसके ख्यालों  की  थोड़ी  सी  बरसात  कर  दे 

मेरे  अजीजों  के   तोहफा  -ए  -ज़ख़्म  को  उसकी   मासूम  ज़ज्बातों  का  मरहम  कर  दे
ग़र  चाहे  तू  ए  खुदा  मेरी  जान  ले   उसकी  जान  ताउम्र  महफूज़  कर  दे 

ख़ता  क्या  मेरी  ख़बर  नहीं  सज़ा  दी  है  तूने  इतनी  दो  चार   की  सौगात  और  कर   दे




आँखों  की  झिलमिलाहट  में  धुधला  अक्स  है  उसका   उसे  मेरा  दरकार  कर  दे 

गुज़रे  लम्हों  के  इक-इक  पल  को  मेरे  यादों  के  दयार  में  महफूज़  कर  दे
महरूम  हुआ  है  जो एक-एक   पल  हर एक   पल  को  मेरे  दामन  का  फ़ूल  कर  दे 

फ़ीकी  फ़ीकी  फ़िज़ा  उजड़ा  उजड़ा  दिल  का  चमन  या  खुदा  भेज  के  उसको  महफ़िल  रंगीन  कर  दे






इल्म  है  मुझको  भी  तलकी -ए -होश  का  उसका  एक  झूठा  वादा  ही  मेरा  पयाम  कर  दे

इक  पल  को  खिल  जाउंगी   एक  पल  को  सवर  जाउंगी   जीस्त  अपनी  ही   है  इसे  अपनी  ही  नज़र  कर  दे
उसका  हर  हार्फ़   अब  दिल  के  सफे  पर  लिखा  मिलता  है  उसे  मिटा  दे  या  उसका  रंग  शोख  कर  दे 
बांधा  है जिन  कच्चे  धागों  में  उसे  तोड़  दे   या  उसे  भेज  के  ये  रिश्ता  मज़बूत  कर  दे


सारा 

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