बुधवार, 6 जून 2012

निश्छल प्रेम ............!!!



ये रात के सन्नाटें जिनमे हैं अपनी ही बाँतें
तेरे निश्छल प्रेम ने मेरे सुख दुःख हैं बांटे


जब भी सोचने बैठूं तुमको जाने क्यों बह जाती है ये आँखें
किन जन्मो का हिसाब है ये किन धागों से है गए हम बाँधें
नीदों में भी हमने हैं तुमसे जीवन क़े हर रफ़्तार हैं बांटें


तुम पर प्यार लुटा दूँ तुमसे ही चाहूँ प्यार की अनमोल सौगातें
मासूम वक़्त में साथ चलने  के कुछ  वादे और वो कोमल इरादें
चांदनी की इस मद्धिम प्रकाश में पायीं हैं हमने ऋतुओं की बरसातें


शाम ढले आँगन क़े नीम  छावं में  चिड़ियों  की  चूँ चूँ करती आवाजें
एक पल दिल को छूती दूजे पल दूर कंही उड़ जाती लेकर अपनी बाँतें
बाट जोहती लौटने की दरवाज़े पर टक टक करती ये सूखी आँखें


जब तुम आते अल्हड सी बलखाती नदिया सी मै भी तुमसे मिलने आती
बेखबर हो शब्-ओ-सुबह तेरी याद में तेरी  बात में दिन रैन बिताती
बरसो-बरस तेरे आने  पर निश्छल मन से तुम पर सारा प्यार लुटाती

 ..............................सारा

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